Wednesday, April 15, 2020

सत्य कई बार हार चूका है असत्य से


नमस्कार,

आज १५ अप्रैल २०२० है।  पुरे देश और विश्व में कोरोना नामक महामारी ने कहर मचा रखा है।  पर मुझे लगता है इस महामारी से भी भयंकर आपदा हमारे देश के लोगो की तर्क विहीन और आलसी मानसिकता  है।  बचपन से हम पढ़ते आ रहे है और सभी धर्म ग्रंथो में भी इस बात का उल्लेख है कि धर्म की हमेशा जीत होती है।  असत्य कितना भी ताकतवर क्यों न हो, आखिर में सत्य सामने आ ही जाता है।  

परन्तु वर्तमान परिदृश्य में ऐसा कुछ भी होता नज़र नहीं आ रहा। बात सिर्फ एक असत्य या सत्य की हो तो समझ सकते है पर यहाँ तो हज़ारो लाखो झूठ और अफवाहो का दौर चल रहा है।  आप किस किस पर बहस करेंगे ?
मेरा मानना है की कुछ दिनों के लिए देश में सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म और न्यूज़ चैनल बंद कर देना चाहिए।  क्योकि कोई भी १०० प्रतिशत सच नहीं बोलता।  न्यूज़ चैनल वाले अपनी टी आर पी के लिए कुछ भी बहस करते रहते है।  कोई इनसे जा के सबूत नहीं मांगता।  यूट्यूब फेसबुक व्हाट्सप्प पर तो फेक न्यूज़ ने कहर मचा रखा है।  ये सब भी इतना चिंताजनक नहीं होता अगर ये किसी विशेष समय में होता और ख़तम हो जाता। 
मुझे सत्य हारता इसलिए नज़र आता है क्योकि ये सब कई सालो से चलता आ रहा है और अब ये भ्रामक बाते लोगो के दिमाग में नीव की तरह जम गई है। 

मैं अपना ही उदाहरण देना चाहूंगा - 
वर्ष २००४ में मेरा स्कूल ख़तम हुआ था।  उस समय मेरी मानसिकता एक क्रन्तिकारी स्वाभाव की थी और मेरी नज़रो में महात्मा गाँधी कोई विशेष हीरो नहीं थे।  हालाँकि हमारी किताबो में सभी जगह उनकी तारीफ ही की गई थी।  पर फिर भी कहीं न कहीं मुझको आज़ादी की लड़ाई में उनका रोल संतोषजनक नहीं लगता था।  

वर्ष २००४ में जब मैंने कॉलेज में दाखिला लिया और कुछ वर्ष हॉस्टल में रहा तो मेरी जान पहचान विभिन्न प्रांतो से आये हुए लड़को से हुई। उस वक़्त कई बार वाद विवाद हुए और २००६ तक मेरी मानसिकता गाँधीजी को लेकर थोड़ी बदल गई।  अब मुझे लगने लगा था की जिस आदमी के पीछे पूरा देश खड़ा था उसमे कुछ बात तो होगी। 

२००८ में मेरी मुलाकात उन छात्रों से हुई जो उस समय आईएएस की तैयारी कर रहे थे। वो लोग काफी किताबे पढ़ते थे और उनसे वाद विवाद करने के बाद मेरे मन में गांधीजी की छवि बदलकर एक कुशल राजनीतिज्ञ की तरह हो गई।  
सारांश में  मैं यह कहना चाहूंगा की जैसे जैसे हम किसी भी बात की तह तक जाते है वैसे वैसे हमारे विचार बदलते है।  पर आज का दौर पूरी तरह विपरीत है।  यहाँ लोग सच्चाई जानना ही नहीं चाहते। 

ठीक उसी तरह महात्मा गाँधी , चाचा नेहरू , वल्लभ भाई पटेल , वीर सावरकर जैसे  कई लोगो के बारे में हज़ारो मैसेज सोशल मीडिया पर घुमते रहते है।  जो लोगो ने अपने दिमाग में बैठा लिए है और अब ये सब बदलने की कोई सम्भावना नहीं है।  मैं नहीं जानता की इन लोगो के बारे में जो भी मीडिया पर आता है उसमे कितना सच और कितना झूठ है।  पर मैं इतना जानता हूँ की गड़े मुर्दे उखाड़ने से इस देश का कोई भला नहीं होने वाला। 

इससे भी खतरनाक ये है की देश में "निष्पक्ष" नाम की कोई चीज़  नहीं रह गई है।  
या तो आप भाजपाई होंगे या कोंग्रेसी 
या तो आप हिंदुत्व की बात करो या पाकिस्तान चले जाओ  
या तो आप भक्त होंगे या चमचे (ये बाते न्यूज़ चैनल और न्यायालय के जज पर भी लागु होती है। )

आज की स्तिथि की बाते करे तो अगर मैं आज नरेंद्र मोदी का विरोध करू तो कल मुझको उनकी तारीफ करने का कोई हक़ नहीं।  
अगर ऐसा किया तो एक पक्ष के लोग कहेंगे - आ गई अक्ल ठिकाने ? उस दिन कहाँ गई थी तुम्हारी अक्ल ? दूसरे पक्ष के लोग कहेंगे - आरएसएस  ने इसको भी खरीद लिए ? या फिर तू भी मोटा भाई से डर गया ?


ये सभी बाते यहाँ ब्लॉग में इसीलिए लिख रहा हूँ क्योकि मैं जानता हु की कोई भी भेड़ चाल चलने वाला इसे नहीं पढ़ने वाला।  वो सभी लोग व्हाट्सप्प फेसबुक ट्विटर और यूट्यूब में बिजी रहते है।  

आशा करता हूँ की जो भी इसको पढ़े वो अपने आस पास आने वाली हर खबर को तुर्रंत ना माने।  मेरा तो न्यूज़ चैनल पर से भी विश्वास उठ गया है।  अभी देश का भविष्य सिर्फ इसी में है की हम सब अपना अपना काम ईमानदारी से करे और सोशल मीडिया से जितना  हो सके दूर रहे। 

धन्यवाद   

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